SRINAGAR: आपने कभी धागों में लटकती सब्जियों को सुखते देखा है?

साल भर ही कश्मीर में कुदरत के कई नजारें देखने को मिलते है..लेकिन गर्मी और सर्दी का मौसम यहां के बाशिन्दों के लिए अलग अलग चुनौतियां लेकर आता है...पूरे भारत में सर्दीयों की शुरूआत के साथ ही घाटी में भी हाड़ को जमा देने वाली ठंड पड़ती है...माइनस में जाने वाला पारा दिन ब दिन गिरता चला जाता है...और गिरते हुए पारे के साथ ही लोगों की मुश्किलें भी बढ़ती चली जाती है...ऐसी स्थिती में उनको रसद यानि खान पान की बड़ी समस्या का सामना न करना पड़े इसके लिए कश्मीर के बाशिन्दें गर्मीयों से ही इसकी तैयारी करना शुरू कर देते है...

SRINAGAR: आपने कभी धागों में लटकती सब्जियों को सुखते देखा है?
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श्रीनगर:-कश्मीर में सर्दियों की शुरूआत होते ही वहां के बाशिन्दों के लिए कई मुसीबते शुरू हो जाती है।  उन्हीं में से एक है खाने पीने और रसद की समस्या माइनस में जाने वाला पारा सबकुछ जमा देता है। ऐसे तापमान में रसद का किया हुआ स्टॉक ही आपके काम आता है । इस स्टॉक में सुखी सब्जियों का पुराना प्रचलन आज भी कश्मीर में जिन्दा है। यूं तो साल भर ही कश्मीर में कुदरत के कई नजारें देखने को मिलते है.। लेकिन गर्मी और सर्दी का मौसम यहां के बाशिन्दों के लिए अलग अलग चुनौतियां लेकर आता है। पूरे भारत में सर्दीयों की शुरूआत के साथ ही घाटी में भी हाड़ को जमा देने वाली ठंड पड़ती है। माइनस में जाने वाला पारा दिन ब दिन गिरता चला जाता है और गिरते हुए पारे के साथ ही लोगों की मुश्किलें भी बढ़ती चली जाती है।

ऐसी स्थिती में उनको रसद यानि खान पान की बड़ी समस्या का सामना न करना पड़े इसके लिए कश्मीर के बाशिन्दें गर्मीयों से ही इसकी तैयारी करना शुरू कर देते है। सब्जियों को धागों में डालकर उन्हें धूप में सुखाया जाता है, और उसको तब तक सुखाया जाता है जब तक वो पूरी तरीके से सुख न जाये। इसमें सुखी सब्जियों के अलावा मछलियों को भी इस तरह से सुखाया जाता है और इन सब तैयारियों के पीछे का सबसे बड़ा कारण होता है कि सर्दियों के मौसम में किसी भी तरह से खाने पीने की कोई समस्या न आये, क्योंकि ज्यादा ठंड पड़ने पर दुकानों तक पहुंचने वाली सप्लाई भी बंद हो जाती है।

बर्फ से पूरा कश्मीर ढक जाता है। ऐसी स्थिती में घरों के बंद रहते हुये भी अपने खाने पीने का पूरा इंतजाम कश्मीर के बाशिन्दे पहले से ही कर लेते है। कश्मीरी भाषा में सुखी सब्जियों को होख स्युन कहते है।  होख का मतलब होता है सूखा.जबकि स्यून का मतलब होता है सब्जी,बैंगन,टमाटर, मूली. लौकी,कद्दू, शलजम, सिंहपर्णी साग, पालक, लाल मिर्च, क्विन और यहां तक कि खट्टे सेब,  खुबानी और आलूबुखारा जैसी सब्जियों की धूप में सुखाया जाता है ताकि सर्दियों में इसका इस्तेमाल किया जा सके।

ये एक ऐसी परंपरा है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जा रही है। पहले से ही हमने अपने घरों में बड़े बुढ़ों को सब्जियां सुखाते हुये देखा है जिसमें कदू बैंगन मूली.जैसी सब्जियां हो गई उन्हें जमीन के अन्दर दबा दिया जाता था और उन्हें जरूरत पड़ने पर निकाल कर बना लिया जाता था । इससे उन सब्जियों में ताजगी बनी रहती थी। लोगों की सेहत भी ठीक रहती थी, बाहर कितनी भी बर्फ पड़ रही हो लेकिन अगर आपने सब्जियां रखी हुई होती है तो वो आपके ही काम ऐसे समय पर आती है, आज के समय में सब्जियां भी दूषित हो जाती है पहले उन्हें फ्रेश और इस्तेमाल में लाने के लिए सुखाकर उसके बाद बनाकर खाया जाता था जो सही मायने में सेहतमंद था। सुखी सब्जियों को लेकर कश्मीर में सर्दियों के मौके पर खास तैयारियां की जाती है, उनमें कांगडी, फैरन के साथ ड्राई वेजीटेबल की भी जरूरत समझी जाती है, हालाकिं डी हाइड्रेटेड वेजीटेबल कई मामलों में नुकसानदेह भी बताया गया है कई डॉक्टरों की इसे लेकर अलग अलग राय है लेकिन फिर भी ये कश्मीर में सदियों से चली आ रही एक परंपरा है।

 

 

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