CM Vs LG : जम्मू-कश्मीर में 370 के ख़ात्मे के बाद, एलजी और चीफ मिनिस्टर में कौन कितना मज़बूत ?
Power Distribution Between CM & LG : आर्टिकल 370 के खात्मे और जेके रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 के लागू होने के बाद, जम्मू कश्मीर की हैसियत दूसरे राज्यों से अलग हो गई है. इस एक्ट के तहत असेंबली के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं. लेकिन कई ऐसे मामले में है जिनमें उसे आज़ादी हासिल है.
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Jammu and Kashmir : जम्मू कश्मीर सरकार केंद्रीय होम मिनिस्ट्री के उस नोटिस का इंतेजार कर रही है जिसमें, मुख्यमंत्री और एलजी के अधिकार क्षेत्र और जिम्मेदारियों तथा शक्तियों की बात होनी है. दरअसल, आर्टिकल 370 के खात्मे और जेके रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 के लागू होने के बाद, जम्मू कश्मीर की हैसियत दूसरे राज्यों से अलग हो गई है. इस एक्ट के तहत असेंबली के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं. लेकिन कई ऐसे मामले में है जिनमें उसे आज़ादी हासिल है.
आइये आपको बताते हैं कि जम्मू कश्मीर के मौजूदा सूरेतहाल क्यों मुल्क की दूसरे राज्यों और केंद्र के जेर इंतेजाम सूबों से मुख्तलिफ है. JK रिऑर्गनाइजेश एक्ट की धारा 32 के तहत जम्मू कश्मीर असेंबली स्टेट से संबंधित मामलों में कानून बनाने के लिए आज़ाद है लेकिन पुलिस और पब्लिक ऑर्डर के मामले उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होंगे...
JK रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 की धारा 239 के तहत केंद्र सरकार के जेरे इंतेजाम सूबों का मुखिया. सद्र जम्हूरिया की ओर से अपॉइंटिड एडमिनिस्ट्रेटर होता है. जेके रिऑर्गनाइजेशन एक्ट की दफा 13 के तहत जम्मू कश्मीर पर भी 239 ए लागू होती है जो विधानमंडल और कैबिनेट की तश्कील देने की इजाज़त देता है. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री के पावर का तज्जिया यूटी के सियासी ढांचे और आईन से मिले इसी अधिकार की बुनियाद पर किया जा सकता है.
हालांकि, आर्टिकल 370 के खातमें के बाद मुख्यमंत्री के अधिकारक्षेत्र में कमी आई है. बावजूद इसके कई मामलों में उसकी अहमियत को बरकरार रखा गया है. मुख्यमंत्री राज्य का चीफ़ एक्जीक्यूटिव होगा और कई मामलों से सरकार का प्रतिनिधित्व करेगा. डेवलपमेंट स्थानीय लोगों की समस्याओं का हल करने और स्टेट से संबंधित कानून बनाने में उसका किरदार सबसे अहम होगा. सरकार के सभी फैसले उसकी मर्जी से ही लिए जाएंगे. विधानसभा में अकसरियती जमाअत का लीडर होने के साथ ही मिनिस्ट्री ऑफ काउंसिल का भी वो लीड करेगा. वजीर आला की सिफारिश पर ही कानून से संबंधित तजावीज़ पेश की जाएगी.
लेकिन यूटी होने के चलते एलजी का किरदार भी अहम होगा. जेके रिऑर्गनाइजेशन एक्ट 2019 की धारा 239 के तहत केंद्र सरकार के जेर इंतेजाम सूबों का मुखिया. सद्र जम्हूरिया की जानिब से अपॉइंटिड एडमिनिस्ट्रेटर होता है.
कई मामलों में मुख्यमंत्री को एलजी से सलाह मश्विरा करना पड़ेगा, बिलखुसूस कौमी सलामती और आईनी मामलों में सीएम के हाथ बंधे होंगे और एलजी की मर्जी के बेगैर वो कुछ नहीं कर पाएगा. इसके अलावा, असेंबली में कोई भी बिल या तरमीम एलजी की मंजूरी के बिना पेश नहीं किया जा सकता. एलजी की मंजूरी के बेगैर सरकार सरकारी अधिकारियों का तबादला और पोस्टिंग भी नहीं कर सकती. सबसे अहम बात ये है कि सरकार एलजी के किसी फैसले पर सवाल नहीं कर सकती और इस बुनियाद पर कि फैसला लेते वक्त एलजी ने काबीना की मंजूरी ली थी या नहीं. उनके फैसले को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता.
गौरतलब है कि एलजी के अधिकार क्षेत्र में उस वक्त मजीद इजाफा हो गया जब असेंबली इंतेखाब से पहले ही उसे एडवोकेट जनरल और लॉ अफसरों की तकर्रूरी का भी अधिकार दे दिया गया. कहा जा सकता है कि इक्तेदार की असल ताकत एलजी के पास ही रहेगी.
जम्मू-कश्मीर के अलावा, पुडुचेरी ही एक ऐसा इलाका है जहां 239 ए लागू है. नेशनल कैपिटल में 239 एए लागू है. इसलिए दिल्ली पुलिस, जमीन और ला एंड ऑर्डर के अलावा दिल्ली सरकार को सभी मामलों में कानून बनाने का अधिकार हासिल है. जबकि जम्मू कश्मीर सरकार पुलिस और ला एंड ऑर्डर को छोड़ सभी मामलों में कानून बनाने की मजाज़ है लेकिन उससे पहले ये यकीनी बनाना होगा कि इससे किसी केंद्रीय कानून पर कोई असर न पड़ता हो...
ऐसे में, नेशनल कॉन्फ्रेंस के कश्मीर जोन के अध्यक्ष एडवोकेट शौकत अहमद मीर ने उम्मीद जाहिर की है कि बिज़नेस रूल्स को लेकर केंद्र सरकार जल्द ही फैसला करेगी और मुख्यमंत्री के ओहदे को ज्यादा अधिकार दिए जाएंगे. दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि अधिकार क्षेत्रों का दोहरा निजाम ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता. उन्होंने कहा कि अवाम और जम्मू कश्मीर की तरक्की प्रभावित होगी...