जम्मू-कश्मीर के Statehood पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को रिटायर्ड अफसरों का Open Letter!

Written By Vipul Pal Last Updated: Jul 02, 2025, 05:38 PM IST

Jammu and Kashmir : जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाने के लिए देश के पांच वरिष्ठ रिटायर्ड अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को खुला पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने जम्मू-कश्मीर से 2019 में छीने गए राज्य के दर्जे पर चिंता जताई है और इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से तत्काल सुनवाई की मांग की है. उन्होंने आग्रह किया है कि इस संवैधानिक मामले पर सुप्रीम कोर्ट खुद संज्ञान ले और एक विशेष पीठ गठित कर इसकी सुनवाई करे.

चिट्ठी लिखने वाले प्रमुख अधिकारी:

इस पत्र पर जिन लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, उनमें पूर्व केंद्रीय गृह सचिव गोपाल पिल्लई, रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक के. मेहता, पूर्व एयर वाइस मार्शल कपिल काक, जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्व वार्ताकार राधा कुमार और पूर्व केंद्रीय सचिव अमिताभ पांडे शामिल हैं. इन सभी ने कहा कि केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा 5 अगस्त 2019 को खत्म कर दिया था, लेकिन अब तक उसे दोबारा बहाल नहीं किया गया है, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार इसके जल्द बहाल होने का आश्वासन दिया था.

Letter में लिखा है क्या ?:

पत्र में कहा गया है कि यह फैसला भारतीय संविधान और संघीय ढांचे की भावना के खिलाफ है. भारत एक संघीय लोकतंत्र है, जहां राज्यों के अधिकारों का सम्मान करना जरूरी है. बीते 52 वर्षों से राज्यों की स्वायत्तता ही देश की एकता की नींव रही है, ऐसे में जम्मू-कश्मीर का दर्जा हटाना एक गलत मिसाल पेश करता है.

पूर्व अधिकारियों ने यह भी मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट सुनिश्चित करे कि भविष्य में कोई भी सरकार इस तरह किसी राज्य का दर्जा मनमाने ढंग से न छीन सके. उन्होंने जोर देकर कहा कि अब समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा फिर से दिया जाए.

एलजी की फैसलों पर सवाल:

पत्र में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए गए हैं. अफसरों ने कहा कि मौजूदा प्रशासन में लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है और उन्हें अपनी बात कहने में डर लगता है. हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बहाने केंद्र सरकार यह कह सकती है कि राज्य का दर्जा बहाल करने का यह सही समय नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि अब देरी नहीं की जानी चाहिए.

पूर्व अधिकारियों का यह कदम जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को लेकर जारी बहस को फिर से केंद्र में ले आया है और सुप्रीम कोर्ट के आगे एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.